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पृष्ठभूमि:
राष्ट्रभाषा हिन्दी के ज्योतिस्तम्भ राजर्षि श्री पुरुषोत्तमदास टंडन की स्मृति में स्थापित 'हिन्दी भवन' के अस्तित्व में आने के पीछे संघर्षपूर्ण और लंबा इतिहास है।
बात सन 1960 की है। हिन्दी के महाप्राण टंडनजी उन दिनों रोगशय्या पर पड़े थे। तब दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने हिन्दी के इस भीष्म पितामह को एक अभिनंदन ग्रंथ भेंट करने का शुभ संकल्प लिया। एक अभिनंदन समिति गठित की गई और श्री लालबहादुर शास्त्री इसके अध्यक्ष तथा पंडित गोपालप्रसाद व्यास मंत्री बने। ये दोनों अभिनंदन ग्रंथ के संपादक मंडल में भी थे। राजर्षि टंडन को बड़ी मुश्किल से अभिनंदन ग्रंथ स्वीकारने के लिए राजी किया गया।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद ने 23 अक्टूबर, 1960 को प्रयाग में समारोहपूर्वक राजर्षि को अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया। इस समारोह के मंच पर बाबू संपूर्णानंद, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत सहित हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार, पत्रकार, कई राज्यों के राज्यपाल, स्वतंत्रता-सेनानी एवं हिन्दीसेवी उपस्थित हुए। इस समारोह में टंडनजी ने क्षीण स्वर में देश की जनता को अपना अंतिम संदेश दिया।
यह ऐतिहासिक अभिनंदन समारोह सम्पन्न हुआ और इसके निमित्त बनी समिति के पास कुछ धनराशि बच गई। समिति ने इस धन को टंडनजी की स्मृति-रक्षा के लिए व्यय करने का निश्चय किया और श्री लालबहादुर शास्त्री की अध्यक्षता में 'श्री पुरुषोत्तम हिन्दी भवन न्यास समिति' का विधिवत गठन करके इसे 23 मई, 1962 को पंजीकृत करा लिया गया।
पं. गोपालप्रसाद व्यास ने इसके मंत्री-पद का दायित्व संभाला।
14 अक्टूबर, 1965 को 25, 800 रुपये सरकार को देकर नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली के मध्य स्थित राउज़ एवेन्यू क्षेत्र में 1250 वर्ग गज के एक भूखंड की रजिस्ट्री करा ली गई। रजिस्ट्री तो हो गई, किन्तु भूमि पर कब्जा नहीं मिला। कब्जा मिला पूरे 19 साल 15 दिन के लंबे संघर्ष के बाद 29 अक्टूबर, 1985 को।
कब्जा मिलने के बाद राजधानी के प्रतिष्ठित नागरिकों, साहित्यकारों, पत्रकारों तथा संस्था-प्रमुखों को आमंत्रित करके 'भूमि-दर्शन' नाम से आयोजन किया गया।
जनवरी, 1989 में शहरी विकास मंत्रालय से सप्लीमेंटरी लीज कराने और लीज की तिथि से दो वर्ष के भीतर निर्माण संपन्न कराने का निर्देश मिला। लीज करा ली गई।
8 अप्रैल, 1989 को तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री कृष्णचंद्र पंत द्वारा 'हिन्दी भवन' का शिलान्यास समारोहपूर्वक संपन्न हुआ।
5 जून, 1989 को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने 'हिन्दी भवन' के नक्शों को स्वीकृति प्रदान कर दी।
14 दिसम्बर, 1989 को हिन्दी भवन के निर्माण के लिए सर्वश्री फाउंडेशन इंजीनियर्स, नई दिल्ली को विधिवत नियुक्त किया गया।
25 दिसम्बर, 1989 को न्यास के पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने भवन-भूमि पर फावड़ा चलाकर वेद-मंत्रों के साथ भवन-निर्माण का शुभारंभ किया।
1 जनवरी, 1990 को निर्माण की देखरेख के लिए एक वरिष्ठ एवं अनुभवी इंजीनियर की नियुक्ति की गई।
14 फरवरी, 1990 को 'हिन्दी भवन' के गर्भ में देवनागरी लिपि और हिन्दी के इतिहास को ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण कराकर उसे कालपात्र में रखकर भूगर्भिष्ठ किया गया।
इस कालपात्र प्रतिष्ठान समारोह में हिन्दीतर विदुषी महिलाओं ने 'जय हिन्दी' अंकित ईटों को स्थापित किया।
इस प्रकार अनेक आर्थिक व तकनीकी कठिनाइयों के बावजूद 'हिन्दी भवन' भारत की राजधानी के बीचों-बीच खड़ा हो ही गया।
उद्देश्य:
हिन्दी भाषा एवं देवनागरी लिपि का प्रचार करना।
हिन्दी भाषा के अनुसंधान-कार्य में सहयोग करना।
पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की व्यवस्था करना।
पुस्तकालय, वाचनालय तथा संदर्भ एवं शोधकक्ष की स्थापना और उनका प्रबंध करना।
कंप्यूटरीकृत सूचना केन्द्र तथा संग्रहालय की स्थापना करना।
हस्तलिखित पांडुलिपियों, ग्रंथों एवं चित्रों को एकत्र करना और सुरक्षित रखना।
हिन्दी भाषा और साहित्य से संबंधित परिचर्चाएं, संगोष्ठियां, व्याख्यान एवं समारोह आयोजित करना।
दिवंगत साहित्यकारों की जन्मशतियां मनाना एवं उनके चित्र हिन्दी भवन में स्थापित करना।
देश की अन्य प्रादेशिक भाषाओं की प्रगति में सहयोग देना।
विषम परिस्थिति में साहित्यकारों को सार्थक सहयोग देना।
उल्लेखनीय गतिविधियाँ/ उपलब्धियाँ/ प्रतिभागिता:
हिन्दी भवन के प्रथम तल पर पूर्णतः वातानुकूलित एक भव्य सभागार है। हिन्दी भवन सभागार में साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा जनहिताय आयोजन करने वाली संस्था को किराये में विशेष छूट प्रदान की जाती है।
हिन्दी भवन के आधारस्तंभ एवं पूर्व अध्यक्ष श्री धर्मवीर (आई.सी.एस.) की स्मृति में एक संगोष्ठी कक्ष की स्थापना हिन्दी भवन के तृतीय तल पर की गई है। कक्ष में साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा जनहिताय आयोजन करने वाली संस्थाओं को किराये में विशेष छूट प्रदान की जाती है।
हिन्दी भवन के संस्थापक मंत्री एवं शिरोमणि साहित्यकार पं.गोपालप्रसाद व्यास की स्मृति में हिन्दी भवन के बेसमेंट में एक सभाकक्ष स्थापित किया गया है। साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा जनहिताय आयोजन करने वाली संस्थाओं को किराये में विशेष छूट प्रदान की जाती है।
हिन्दी भवन के भूतल पर एक पुस्तकालय एवं वाचनालय की स्थापना की गई है। इस पुस्तकालय में हिन्दी की प्राचीन-से प्राचीन और नई-से-नई भाषा, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान आदि की मौलिक और अनूदित सभी प्रकार की लगभग दस हजार पुस्तकों का संग्रह विषयवार किया गया है।
हिन्दी भवन के तृतीय तल पर एक संदर्भ एवं शोधकक्ष है। जिसमें संपूर्ण गांधी वांडमय, नेहरू वांडमय, संपूर्ण विवेकानन्द साहित्य, विनोबा साहित्य, वेद, शास्त्र, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत, संस्कृत साहित्य, विभिन्न प्रकार के कोश, शब्दकोश, समांतर कोश, महत्वपूर्ण साहित्यकारों की रचनावलियां, शोधग्रंथ, अभिनंदन ग्रंथ, हिन्दी में संपूर्ण ओशो साहित्य, आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य एवं अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ शोधार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। संदर्भ एवं शोधकक्ष में शोधार्थियों के बैठकर कार्य करने की समुचित व्यवस्था है।
हिन्दी भवन के द्वितीय तल पर हिन्दी माध्यम से कंप्यूटर प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एक केन्द्र की स्थापना की गई है। जिसमें प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए छात्रों से नाममात्र का लैब शुल्क लिया जाता है। तीन माह की अवधि वाले इस प्रशिक्षण में छात्र-छात्राओं को कंप्यूटर का सामान्य ज्ञान, एम.एस.ऑफिस, डी.टी.पी, इंटरनेट एवं स्कैनिंग का ज्ञान दिया जाता है।
हिन्दी भवन की शोधकार्य की परिकल्पना इस प्रकार हैः-
संस्कृत भाषा और साहित्य तथा देशी और विदेशी भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन।
हिन्दी (पश्चिमी, पूर्वी, राजस्थानी और पहाड़ी) तथा उसकी उपभाषाओं, बोलियों (ब्रजभाषा, बांगरू, बुंदेली, कन्नौजी, अवधी, बघेली,छतीसगढ़ी, मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी, भोजपुरी, मगही, मैथिली, कुमाऊंनी तथा गढ़वाली आदि) के ग्रंथों साहित्यकारों, विशेषताओं पर अलग-अलग और तुलनात्मक अध्ययन।
हिन्दी की सहयोगी या उपभाषाओं जैसे उर्दू, पंजाबी, गुजराती और मराठी आदि के योगदान और तुलनात्मक विषयों पर कार्यशालाएं।
हिन्दी एवं गुरुग्रंथ साहब और सिख गुरुओं की वाणी पर शोधकार्य।
हिन्दी-गुजराती आदान-प्रदान पर शोधकार्य।
हिन्दी-मराठी आदान-प्रदान पर शोधकार्य।
दक्षिण भारतीय भाषाओं तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़ पर शोधकार्य और हिन्दी के साथ उनके तुलनात्मक संबंध पर शोधकार्य।
विभिन्न संप्रदायों के साहित्य पर शोधकार्य।
हिन्दी और साधु-संन्यासी, व्यापारी, तीर्थयात्री, आर्यसमाज आदि पर शोधकार्य।
हिन्दी और जैन धर्म।
हिन्दी और बौद्ध धर्म।
हिन्दी की एकरूपता।
प्रमुख पदाधिकारी:
श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी, अध्यक्ष
डॉ0 गोविन्द व्यास, मंत्री
श्री हरी बर्मन, कोषाध्यक्ष
प्रकाशनः
विवरण उपलब्ध नहीं
मान्यता/ पुरस्कार/ सम्मान:
विवरण उपलब्ध नहीं
उल्लेखनीय सूचनाएँ:
विवरण उपलब्ध नहीं
वेब आधारित कड़ियाँ (Links):
• https://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दी_भवन,_नई_दिल्ली
• https://books.google.co.in/books?id=d2hsCwAAQBAJ&pg=PT111&lpg=PT111&dq=%22%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80+%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%A8%22+%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80&source=bl&ots=71PyWwaEvg&sig=vLv38VjMCjE1ACN7eDMNLRqOCM4&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwi_nbXFi7XUAhUiTY8KHQKsAAoQ6AEIggEwDw
सूचना-स्रोत:
निजी संपर्क, ईमेल, इंटरनेट
वेबसाइट/ ब्लॉग:
http://hindibhawan.org/
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