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नागरी प्रचारिणी सभा
Nagri Pracharini Sabha
पता:
नागरी प्रचारिणी सभा
विशेश्वर गंज मुख्य डाकघर के सामने,
वाराणसी- 221001
उत्तर प्रदेश। Email: उपलब्ध नहीं Phone: +(91)-542-2331488, 2354408
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नागरी प्रचारिणी सभा से संपर्क कीजिए:
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पृष्ठभूमि:
नागरीप्रचारिणी सभा, हिंदी भाषा और साहित्य तथा देवनागरी लिपि की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार करनेवाली भारत की अग्रणी संस्था है।
काशी नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना १६ जुलाई, १८९३ ई. को श्यामसुंदर दास जी द्वारा हुई थी। यह वह समय था जब अँगरेजी, उर्दू और फारसी का बोलबाला था तथा हिंदी का प्रयोग करनेवाले बड़ी हेय दृष्टि से देखे जाते थे।
नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना क्वीन्स कालेज, वाराणसी के नवीं कक्षा के तीन छात्रों - बाबू श्यामसुंदर दास, पं॰ रामनारायण मिश्र और शिवकुमार सिंह ने कालेज के छात्रावास के बरामदे में बैठकर की थी।
बाद में १६ जुलाई १८९३ को इसकी स्थापना की तिथि इन्हीं महानुभावों ने निर्धारित की और आधुनिक हिंदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई बाबू राधाकृष्ण दास इसके पहले अध्यक्ष हुए।
काशी के सप्तसागर मुहल्ले के घुड़साल में इसकी बैठक होती थीं। बाद में इस संस्था का स्वतंत्र भवन बना। पहले ही साल जो लोग इसके सदस्य बने उनमें महामहोपाध्याय पं॰ सुधाकर द्विवेदी, इब्राहिम जार्ज ग्रियर्सन, अंबिकादत्त व्यास, चौधरी प्रेमघन जैसे भारत ख्याति के विद्वान् थे।
तत्कालीन परिस्थितियों में सभा को अपनी उद्देश्यपूर्ति के लिए आरंभ से ही प्रतिकूलताओं के बीच अपना मार्ग निकालना पड़ा। किंतु तत्कालीन विद्वन्मंडल और जनसमाज की सहानुभूति तथा सक्रिय सहयोग सभा को आरंभ से ही मिलने लगा था, अतः अपनी स्थापना के अनंतर ही सभा ने बड़े ठोस और महत्वपूर्ण कार्य हाथ में लेना आरंभ कर दिया।
सभा की स्थापना के समय तक उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में अंग्रेजी और उर्दू ही मान्य थी। सभा के प्रयत्न से, जिसमें स्व. महामना पं॰ मदनमोहन मालवीय का विशेष योग रहा, सन् १९०० से उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रदेश) में नागरी के प्रयोग की आज्ञा हुई और सरकारी कर्मचारियों के लिए हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का जानना अनिवार्य कर दिया गया।
उद्देश्य:
हिन्दी भाषा और साहित्य तथा देवनागरी लिपि की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार>
उल्लेखनीय गतिविधियाँ/ उपलब्धियाँ/ प्रतिभागिता:
आर्यभाषा पुस्तकालय का संचालन, जो देश में भारत में हिंदी का सबसे बड़ा पुस्तकालय माना जाता है।
पत्रिका सौ साल से अधिक समय से हस्तलिखित ग्रंथों की खोज में जुटी है।
सन् १९५३ से सभा अपना प्रकाशन कार्य समुचित रूप से चलाते रहने के उद्देश्य से अपना मुद्रणालय भी चला रही है।
अपनी समानधर्मा संस्थाओं से संबंधस्थापन, अहिंदीभाषी छात्रों को हिंदी पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति देना, हिंदी की आशुलिपि (शार्टहैंड) तथा टंकण (टाइप राइटिंग) की शिक्षा देना, लोकप्रिय विषयों पर समय-समय पर सुबोध व्याख्यानों का आयोजन करना, प्राचीन और सामयिक विद्वानों के तैलचित्र सभाभवन में स्थापित करना आदि सभा की अन्य प्रवृत्तियाँ हैं।
प्रमुख पदाधिकारी:
ब्रजेश चंद्र पांडेय, सहायक मंत्री
डॉ. जितेंद्र नाथ मिश्र, सदस्य
प्रकाशनः
त्रैमासिक 'नागरीप्रचारिणी पत्रिका'।
हिंदी शब्दसागर।
हिंदी व्याकरण।
वैज्ञानिक शब्दावली।
कचहरी-हिंदी-कोश।
द्विवेदी अभिनंदनग्रंथ।
संपूर्णानंद अभिनंदनग्रंथ।
हिंदी साहित्य का इतिहास।
हिंदी विश्वकोश।
पारिभाषिक शब्दावली।
ग्रंथावलियाँ-
सूर,
तुलसी,
कबीर,
जायसी,
भिखारीदास,
पद्माकर,
जसवंसिंह,
मतिराम।
मान्यता/ पुरस्कार/ सम्मान:
विवरण उपलब्ध नहीं
उल्लेखनीय सूचनाएँ:
आज प्रचारिणी के पास 20 हजार से अधिक पांडुलिपियां, 50 हजार से अधिक पुरानी पत्रिकाएं और 1.25 लाख से अधिक ग्रंथों का भंडार है। हिंदी की इस थाती के संरक्षण के लिए संस्था के पास पर्याप्त धन नहीं है।
वेब आधारित कड़ियाँ (Links):
• https://hi.wikipedia.org/wiki/नागरीप्रचारिणी_सभा
• bharatdiscovery.org/india/नागरीप्रचारिणी_सभा
सूचना-स्रोत:
निजी संपर्क, ईमेल, इंटरनेट
वेबसाइट/ ब्लॉग:
विवरण उपलब्ध नहीं
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